कोई भी कृषक मौसम अनुसार फसलों के बीजोत्पादन कार्यक्रम हेतु पंजीकरण के लिए प्रारूप 9 Online पूर्ण भरकर निर्धारित शुल्क के साथ संबंधित बीज उत्पादक संस्था के माध्यम से राज्य सरकार द्वारा निर्धारित तिथि तक संबंधित संस्था कार्यालय में जमा करवाकर पंजीकरण करवा सकते है।
बीज उत्पादक कृषक की स्वयं की पासपोर्ट साईज फोटो व भूमि के स्वामित्व से संबंधित राजस्व दस्तावेज (जमाबंदी) की सत्यापित प्रति, बीज उत्पादन क्षेत्र का नजरी नक्षा जिसमें रास्ता व खेत की पहचान चिन्ह्, आधार कार्ड एवं परिवार की भूमि पर बीजोत्पादन लेने की स्थिति में परिवार के सदस्यों की सहमति पत्र अथवा 10 रूपये के नॉन्ज्यूडिसियल स्टॉम्प पैपर पर सहमति पत्र या अन्य किसान की भूमि किराये (लीज) पर लिये जाने की स्थिति में 100 रूपये के नॉन्ज्यूडिसियल स्टॉम्प पैपर एग्रीमेन्ट नोटेरी द्वारा सत्यापित होना आवष्यक है।
कृषक द्वारा बीज उत्पादन कार्यक्रम हेतु क्षेत्र के लिए संस्तुतित फसल, किस्म के भारत सरकार द्वारा अधिसूचित (नोटिफाईड) किस्म के प्रजनक/आधार बीज की आवष्यकता अनुसार क्रय राज्य के विष्व विद्यालयों/कृषि अनुसंधान केन्द्र/कृषि विज्ञान केन्द्र/राष्ट्रीय बीज निगम/राजस्थान राज्य बीज निगम व मान्यता प्राप्त बीज उत्पादक संस्थाओं से प्राप्त किया जा सकता है।
प्रत्येक कृषक के खेत में खड़ी फसल में निर्धारित न्यूनतम बीज प्रमाणीकरण मानको एवं फसल की प्रकृति के अनुसार दो से चार निरीक्षण प्रमाणीकरण संस्था के अधिकारियों द्वारा कृषक अथवा उसके प्रतिनिधि के साथ किये जाते है। इसमें प्रथम निरीक्षण पुष्पावस्था के समय किया जाता है जिसमें बुआई में लिये गये बीज के स्रोत फसल की स्थिति एवं पृथक्करण दूरी को जांच कर आगे संबंधित फसल के मानको अनुसार कृषक द्वारा किये जाने वाले आवष्यक सुधार कार्यो (अवांछित पौधे अन्य फसल/किस्मों के पौधे, रोग ग्रस्त पौधे एवं खरपतवार इत्यादि की रोगिंग) की जानकारी दी जाती है। द्वितीय/अन्तिम क्षेत्र निरीक्षण में बीज क्षेत्र प्रमाणीकरण के न्यूनतम निर्धारित मानको के अनुसार मानक पाये जाने पर संबंधित कृषक/प्रतिनिधि को अनुमानित उपज की सूचना दी जाती है।
1. एक खेत में एक ही फसल व किस्म का बीजोत्पादन कार्यक्रम लिया जाना चाहिए।
2. प्रमाणीकरण प्रक्रिया के दौरान आवष्यक दस्तावेजांे (बीज स्रोत सत्यापन के दस्तावेज जैसे टेग, खाली कट्टे, बिल, गेट पास इत्यादि) को संभाल कर रखना चाहिए
3. बीज फसल की कटाई, थै्रसिंग/गहाई के उपरांत उपज को सुखाकर साफ बारदानों में भरकर बुकरम पर्ची व दिये गये कोड़ लगाकर संबंधित उत्पादन संस्था को निर्धारित तिथि अनुसार जमा कर वजन की प्राप्ति रसीद प्राप्त की जानी चाहिए।
जैविक प्रमाणीकरण उत्पाद का प्रमाणीकरण न होकर जैविक उत्पादन की सम्पूर्ण प्रक्रिया का प्रमाणीकरण है जिसके अन्तर्गत प्रक्रिया के विभिन्न घटक जैसे खेत मे उत्पादन, भण्डारण, पषुपालन, रोग व कीट प्रबन्धन दस्तावेजीकरण, विक्रय केन्द्र में विपणन तथा परिवहन इत्यादि सम्मिलित है। जिनका दस्तावेजीकरण व निरीक्षण किया जाता है।
जैविक प्रमाणीकरण हेतु एकल कृषक स्वयं या समूह के रूप में प्रमाणीकरण के लिये आन्तरिक नियंत्रण प्रणाली या कार्य प्रदाता संस्था के माध्यम से प्रमाणीकरण संस्था को आवेदन कर सकते है। आवेदन पत्र के साथ पेन कार्ड, आधार कार्ड, जमाबन्दी की छाया प्रति, आवेदक की पासपोर्ट साईज फोटो, फार्म का नक्षा, सहमति पत्र (यदि आवष्यक हो तो) व निर्धारित शुल्क।
राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम के मानकों के अनुसार एक वर्षीय फसलों के लिये यह अवधि 2 वर्ष है। जबकि बहुवर्षीय फसलों के लिये यह अवधि 3 वर्ष है।
जैविक खेती हेतु रासायनिक उर्वरक, कीटनाषी, खरपतवारनाषी आदि निषिद्ध है एवं किसी प्रमाणीकरण संस्था अनुमोदित जैविक आदान ही अनुमत है जैसे केंचुआ खाद, जैव उर्वरक, जैविक कीटनाषी, जैविक काढ़ा (हर्बल स्प्रे) आदि।
राज. राज्य जैविक प्रमाणीकरण संस्था द्वारा फसल उत्पादन (एकल कृषक/कृषक समूह), प्रोसेसिंग एवं ट्रेडिंग, वन्य उत्पाद संग्रहण, पशुपालन एवं मधुमक्खी पालन एवं जैविक आदान अनुमोदन के प्रमाणीकरण का कार्य किया जाता है।
सिंचाई जल के समुचित एवं दक्षतम उपयोग हेतु आधुनिक सिंचाई प्रणाली का उपयोग सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली है. इन सिंचाई प्रणालियों को प्रोत्साहित करने हेतु कृषकों को उद्यान विभाग द्वारा राजकीय सहायता प्रदान करने की योजना ही सूक्ष्म सिंचाई योजना है।
सूक्ष्म सिंचाई योजना के तहत बूंद-बूंद (ड्रिप) सिंचाई, माइक्रो स्प्रिंकलर, मिनी स्प्रिंकलर, फव्वारा एवं रेनगन सिचाई संयंत्र कम में लिए जाते है।
बूंद-बूंद (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली में सिंचाई जल पतली नलियों (लेटरल) व ड्रिपर के माध्यम से सीधे ही पौधों के जड़ क्षेत्र में जाता जबकि फव्वारा सिंचाई प्रणाली में सिंचाई जल पाइप्स व नोजल के माध्यम से छिडकाव वर्षा की भांति होता है. बूंद-बूंद (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली की दक्षता 90-95% होती है जबकि फव्वारा की 70-75% होती है।
इनलाइन ड्रिप सिंचाई प्रणाली में ड्रिपर लेटरल में ही एक निश्चित अन्तराल पर स्थापित रहते हैं जबकि ऑनलाइन ड्रिप में लेटरल पर वन्छानुसार अन्तराल पर मैन्युअली ड्रिपर लगाये जाते हैं. इनलाइन ड्रिप कम अन्तराल की फसलों (यथा सब्जियां) हेतु उपयुक्त हैं जबकि ऑनलाइन ड्रिप अधिक अन्तराल फसल (यथा बगीचों) हेतु उपयुक्त है।
फव्वारा की नोजल 1200 से 1800 लीटर प्रति घंटे की दर से 12 से 18 मीटर तक पानी छिड़कती है जबकि मिनी फव्वारा की नोजल 150 से 600 लीटर प्रति घंटे की दर से 3 से 10 मीटर तक पानी छिड़कती है. पोर्टेबल फव्वारा से खेत में सिचाई हेतु पाइप बार-बार एक स्थान से दुसरे स्थान पर सिफ्ट करने पड़ते है जबकि मिनी फव्वारा की लाइन्स फसल अवधि के दौरान स्थिर रहती है ।
आधुनिक पद्दति से फल, सब्जी, फूल, कपास, गन्ना, अरण्डी जैसी फसलों में प्राथमिकता से बूंद-बूंद सिंचाई पद्दति अपनानी चाहिए, कम अन्तराल की क्षेत्रीय फसलों यथा बाजरा, ग्वार, मूंग, गेहूं, जौ, चना, आदि में फव्वारा या मिनी फव्वारा पद्दति अपनानी चाहिए ।
भारी या चिकनी मिट्टी के क्षेत्र में पोर्टेबल फव्वारा की बजाय मिनी फव्वारा ज्यादा उपयुक्त है जबकि रेतीले क्षेत्रों में फव्वारा व मिनी फव्वारा दोनों उपयुक्त है. ड्रिप सिंचाई हेतु रेतीले क्षेत्रों में अधिक डिस्चार्ज का ड्रिपर काम में ले सकते है जबकि भारी मिट्टी क्षेत्र में कम डिस्चार्ज का ड्रिपर काम में लेना चाहिए।
वर्तमान में फव्वारा सिंचाई संयंत्रों पर लघु/सीमांत कृषको को 60 % व अन्य कृषकों को 50% अनुदान देय है. बूंद-बूंद व मिनी फव्वारा सिंचाई संयंत्रों पर लघु/सीमांत कृषको को 70% व अन्य कृषकों को 50 % अनुदान देय है ।
अनुदान हेतु इ-मित्र के माध्यम से ऑनलाइन आवेदन किया जाना है. पात्र आवेदकों का लक्ष्यों की सीमा में जिला इकाई द्वारा प्रशासनिक स्वीकृति जारी की जाती है. संयंत्र स्थापना पश्चात इसका भौतिक सत्यापन किया जाता है तथा सत्यापन में नियमानुसार पाए गए संयंत्रों पर अनुदान जारी किया जाता है ।
उद्यान विभाग के सहायक निदेशक या उप निदेशक उद्यान का कार्यालय हर जिला स्टार पर है, वहां संपर्क करें।
उद्यान विभाग द्वारा ड्रिप व फव्वारा के निर्माताओ की पंजीकृत सूची में से आपके क्षेत्र में कार्यरत कम से कम 4-5 आपूर्तिकर्ताओं से संपर्क कर संयंत्र स्थापित करने तथा विक्रय पश्चात सेवाओं की जानकारी लेनी चाहिए तथा जिसकी अनुक्रिया सबसे अच्छी हो उसका चुनाव करें।
सूक्ष्म सिंचाई संयंत्र में किसी प्रकार की समस्या होने पर सर्वप्रथम उसकी सुचना सम्बंधित आपूर्तिकर्ता के टोल फ्री नंबर पर बताएं. उचित प्रतिक्रिया प्राप्त न होने की स्थिति में सम्बंधित जिला कार्यालय में प्रस्तुत करें ।
कृषक पौध संरक्षण यंत्र/रसायन अनुदान हेतु आवेदन पत्र, कृषि पर्यवेक्षक/सहायक कृषि अधिकारी/सहायक/उप निदेशक, कृषि (वि0) के कार्यालय में प्रस्तुत कर सकते है।
कृषक अनुदान पर पौध संरक्षण यंत्र क्रय करना चाहता है तो यंत्र की पूर्ण राशि क्रय विक्रय सहकारी समिति/ग्राम सेवा सहकारी समिति/पंजीकृत निर्माता/अधिकृत विक्रेता को जमा कराकर यंत्र प्राप्त किये जाने का प्रावधान है। अनुदान की राशि का भुगतान भौतिक सत्यापन के पश्चात् संबंधित उप/सहायक निदेशक कृषि कार्यालय द्वारा संबंधित कृषक को ऑन-लार्इन बैंक खाते में किया जाता है।
कृषकों को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (तिलहन/दलहन/गेहूं/न्यूट्री सिरियल्स), योजनान्तर्गत मानव चालित पौध संरक्षण यंत्र पर 40-50 प्रतिशत या 600-750 रूपये, शक्ति चालित पौध संरक्षण यंत्रों पर लागत का 40-50 प्रतिशत या 2500 से 10000 रूपये, ट्रैक्टर चालित पौध संरक्षण यंत्रों पर लागत का 40-50 प्रतिशत या 28000 से 37000 रूपये तक अनुदान दिये जाने का प्रावधान है।
राज्य के सभी ऐसे कृषक जिन्हें विभाग की किसी भी योजना से लाभ नहीं मिला है एवं जिले में चयनित आदर्श गाव के कृषकों को प्राथमिकता प्रदान कर लाभान्वित किया जाता है। पौध संरक्षण यंत्रों के वितरण में अनुसूचित जाति/जन जाति, महिला, बीपीएल, सीमान्त, लघु कृषकों एवं अन्त्योदय/खाद्य सुरक्षा परिवारों के कृषकों को प्राथमिकता से लाभान्वित किया जाता है। लघु/सीमान्त/अजा/अजजा/महिला कृषकों की श्रेणी हेतु उप निदेशक कृषि (विस्तार)/सहायक निदेशक कृषि (विस्तार) अपने स्तर पर जमाबन्दी/पासबुक के आधार पर कृषक के जोत/जाति/लिंग/श्रेणी का निर्धारण करते हुए अनुदान स्वीकृत कर सकता है। लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु 30 प्रतिशत महिला कृषकों को प्राथमिकता दी जाती है।
आधार कार्ड की प्रतिलिपि, बैंक खाते की पासबुक/चैक की प्रतिलिपि/पौध संरक्षण यंत्रों पर अनुदान प्राप्ति हेतु फोटो।
संबंधित उप/सहायक निदेशक कृषि (वि.) कार्यालय द्वारा अनुदान की राशि का भुगतान कृषक को ऑन-लार्इन किया जाता है। जिसकी सूचना कृषक के मोबाइल पर सन्देश के माध्यम से सम्प्रेषण होता है एवं सबंधित कृषि पर्यवेक्षक/सहायक कृषि अधिकारी द्वारा भी उपलब्ध रिकार्ड अनुसार सूचना दी जाती है।
व्यक्तिगत